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बाज़ार पॉर्न बेचता है क्योंकि लोग खरीदते हैं – Jagran junction forum

खरी खरी
खरी खरी
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इंसान विकास का पुरोधा है. हम तिलचट्टों , छिपकलियों और हाथियों की जमात से बहुत आगे निकल आये हैं . प्रकृति ने हमें पांच ज्ञानेन्द्रियाँ और पांच कर्मेन्द्रियाँ दीं हैं. इनसे हम अपने इर्द गिर्द तमाम चीज़ों को समझ सकते हैं और तमाम काम कर सकते हैं. ज्ञानेन्द्रियों ( दृष्टि , घ्राण , श्रवण , स्पर्श , स्वाद ) का मकसद यह है कि जब इंसान किसी चीज़ को महसूस करे तो उसको महसूस करने की पीछे के मुख्य ध्येय को न भूले.जीव विज्ञान के सिद्धांतों के अनुसार यौन सुख एक प्रकार का स्पर्श सुख है .लेकिन इंसान में विकास के साथ एक अद्भुत परिवर्तन हुआ है. मुख्य ध्येय से भटक कर उसके काम अधिकाधिक इन्द्रियमुखी होते जा रहे हैं .
भैंस चोकर को सुस्वाद पाती है लेकिन भूसा खा लेती है. कुत्ते के कान केवल मालिक की रोटी और पहरेदारी के लिए फटकते हैं . चील के आँखें उड़ते समय केवल खेत के चूहे तलाशतीं हैं . न भैंस केवल स्वाद के लिए गाज़र का हलवा खाती है , न कुत्ता फ़िल्मी संगीत पर झूमता है और न चील फ़िल्में देखती है. इंसान ने अपनी इन्द्रियों की तलब को तो विस्तार दिया है और इन्द्रियों की मूल वजह इस विस्तार में खो गयी है.
यौन क्रीड़ा का मुख्य उद्देश्य संतानोत्पत्ति है . लेकिन अन्य इन्द्रियों के तरह मनुष्य ने यहाँ भी इन्द्रियों के आगे हथियार डाल दिए. इस लिए वेश्यावृत्ति जैसे व्यवसायों का विकास हुआ.
पोर्न उद्योग मनुष्यों को यौन सुख का आभास देता है . वेश्यावृत्ति प्रत्यक्ष है , पोर्न परोक्ष है. वेश्यावृत्ति में मनुष्यों की मान हानि होती है , पोर्न देखते समय आपकी गतिविधियों का साक्षी केवल आपका कम्प्यूटर होता है. ज़माना वैश्वीकरण का है. सभी मुल्क आपस में जुड़ गए हैं. संचार तंत्र और यातयात में विकास हुआ है. इसका असर अन्य चीज़ों के साथ यौन सुख को प्राप्त करने के संसाधनों पर भी पड़ा है. दो सौ साल पहले यौन अनुभूतियों की परिधि ज्यादातर लोगों के लिए उनका गाँव या शहर था . केवल लम्बी यात्राएं करने वाले इस मामले में थोड़े फैले दायरे वाले थे. अब यात्राएं बढीं हैं और बिना यात्राओं के चीज़ों की सुलभता भी.
वैश्वीकरण के फायदे भी हैं और नुकसान भी . आप केवल अमेरिका का बर्गर ही नहीं खाते अथवा वहां की जींस ही नहीं पहनते . आप वहां की फिल्म तारिकाओं को भी देखते हैं . आप वहां के पोर्न स्टार भी देखते हैं. वैश्वीकरण सभी मुल्कों के लोगों को एक तराजू में तौलने की कोशिश करता है , एक रफ़्तार से दौडाता है. लेकिन विश्व के नक़्शे में अमेरिका और भारत दोनों हैं . दोनों के अपने सांस्कृतिक मूल्य हैं. वैश्वीकरण की इसी हरकत से ये मूल्य चोटिल होते हैं. हो सकता है कि समय के साथ लोग लगभग एक तराजू में बैठना सीख जाएँ , लगभग एक रफ़्तार से दौड़ने लगें , लेकिन समय तो लगेगा ही. विश्व में सभी संस्कृतियों को मिलाने में सबकी अलग अलग संस्कृतियाँ घायल होंगी.
वैश्वीकरण की खिचड़ी में पश्चिम की संस्कृति का बोलबाला है. चीन , भारत , केन्या और श्री लंका न दाल हैं , न चावल . वे केवल मसालों की तरह स्वादानुसार इस्तेमाल किये जाते हैं. लेकिन कई बार मसालों की गुणवत्ता दाल और चावल से ज्यादा होती है. पर दाल और चावल घटिया होने से खिचड़ी का स्वाद बिगड़ जाता है.
मैं सनी लिओन को पोर्न स्टार से ज्यादा एक सामाजिक प्रयोग मानता हूँ . बाजारीकरण जो कि वैश्वीकरण का आर्थिक अंग है , उसका सामाजिक प्रयोग. बाज़ार हर वह चीज़ बेचता है जो बिकती है. खरीदने वाले इसके मानदंड तय करते हैं . समाज स्वतंत्रता से स्वछंदता के ओर बढ़ चला है. स्त्रियाँ हर वह काम करना चाहतीं हैं , जो पुरुष करते हैं . इनमें कई काम गलत भी हैं.
सनी लिओन का सामजिक प्रयोग हमें यौन उन्मुक्तता की ओर ले जाएगा . स्त्रियों के स्वतंत्रता का एक पहलू यौन स्वतंत्रता भी है. लेकिन स्वछंदता स्त्रियों और पुरुषों दोनों के लिए खराब है. वेश्यावृत्ति का बाज़ार संकट में पड़ जाएगा क्योंकि यौन उन्मुक्तता के बाद वेश्याओं की क्या जरूरत ? स्त्री सुख सर्वसुलभ होगा . होड़ लगाने में स्त्रियाँ भी वे सब करेंगी जो पुरुष करते हैं .

सर्कस का एक गोल बड़ा झूला है जिसमें हम बैठे हैं . नीचे की ओर जा रहें हैं . अभी और नीचे जायेंगे . फिर सोचेंगे .फिर ऊपर उठेंगे . लेकिन झूला आप रोक नहीं सकते . सनी लिओन भी नहीं .

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